रामेश्वर लाल डूडी, किसानों की आवाज़ और राजस्थान की राजनीति में एक प्रमुख हस्ती

कांग्रेस नेता रामेश्वर लाल डूडी का राजनीतिक सफर, किसानों के लिए संघर्ष और 4 अक्टूबर 2025 को निधन – पढ़ें पूरी जीवनी और टाइमलाइन।

राजस्थान की राजनीति में जब किसानों की आवाज़ की बात आती है, तो रामेश्वर लाल डूडी का नाम सबसे पहले आता है। गाँव-गाँव तक पहुँच रखने वाले और किसानों के मुद्दों को लगातार उठाने वाले डूडी अब हमारे बीच नहीं रहे। संघर्ष की उनकी लंबी और कठिन यात्रा 4 अक्टूबर, 2025 को समाप्त हो गई, लेकिन उनकी यादें और योगदान हमेशा अमर रहेंगे।

बचपन और शुरुआत

1 जुलाई, 1963 को नागौर जिले के बिरमसर गाँव में जन्मे रामेश्वर लाल डूडी एक साधारण किसान परिवार से थे। खेतों में पले-बढ़े होने के कारण उन्हें किसानों की कठिनाइयों की गहरी समझ थी। यही कारण है कि राजनीति में आने के बाद भी उन्होंने किसानों को अपना मुख्य लक्ष्य बनाया।

राजनीति में सफ़र

रामेश्वर डूडी का सफ़र किसी फ़िल्मी कहानी से कम नहीं था। पंचायत से लेकर विधानसभा और संसद तक, उन्होंने हर स्तर पर अपनी अलग पहचान बनाई।

  • वे 1995 में नोखा पंचायत समिति के प्रधान बने। 1999 में, वे कांग्रेस के टिकट पर नागौर से सांसद चुने गए।
  • वे 2005 से 2010 तक बीकानेर जिला परिषद के अध्यक्ष रहे।
  • उन्होंने 2013 का विधानसभा चुनाव नागौर से जीता।
  • वे 2013 से 2018 तक राजस्थान विधानसभा में विपक्ष के नेता रहे।
  • वे 2022 में राजस्थान राज्य कृषि उद्योग विकास बोर्ड के अध्यक्ष बने।

विपक्ष के नेता के रूप में, उन्होंने वसुंधरा राजे सरकार पर सीधा हमला बोला और किसानों से जुड़े मुद्दों पर सरकार को लगातार घेरा।

किसानों के सच्चे हितैषी

जनता डूडी को सिर्फ़ एक नेता ही नहीं, बल्कि किसानों का हितैषी मानती थी। चाहे सिंचाई का मुद्दा हो, कर्जमाफी की मांग हो या बेरोज़गार युवाओं का मुद्दा, उन्होंने हर बार बेबाकी से अपनी बात रखी।

बीमारी और अंतिम चरण

अगस्त 2023 में उन्हें ब्रेन हेमरेज हुआ और वे लंबे समय तक कोमा में रहे। वे लगभग दो साल तक बीमारी से जूझते रहे और अंततः 4 अक्टूबर, 2025 को 62 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया।

उनके निधन की खबर से नागौर, बीकानेर और पूरे राजस्थान में शोक की लहर दौड़ गई।

रामेश्वर लाल डूडी का जीवन यह दर्शाता है कि राजनीति केवल पद और शक्ति के बारे में नहीं है। सच्ची राजनीति वह है जो लोगों की पीड़ा को समझे और उनके लिए आवाज़ उठाए। किसानों की आवाज़ के रूप में उनकी पहचान अमर रहेगी।

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