नागौर, राजस्थान — राजस्थान की राजनीति में अगर कोई नाम हाल के वर्षों में तेजी से उभरा है, तो वह है विजयपाल मिर्धा। डेगाना विधानसभा क्षेत्र से विधायक रह चुके विजयपाल, एक ऐसे नेता के रूप में सामने आए हैं जिन्होंने पारिवारिक राजनीतिक विरासत को नई दिशा देने की कोशिश की है। वे ना सिर्फ युवाओं के बीच लोकप्रिय हैं, बल्कि अपने क्षेत्र में विकास और सामाजिक कार्यों को लेकर भी चर्चा में रहते हैं।
पारिवारिक विरासत और शुरुआती जीवन
राजस्थान के नागौर जिले के कुचेरा कस्बे में 15 जुलाई 1985 को जन्मे विजयपाल मिर्धा का बचपन एक राजनीतिक माहौल में बीता। उनके पिता, रिछपाल सिंह मिर्धा, खुद एक अनुभवी और प्रभावशाली नेता रहे हैं। मिर्धा परिवार की राजनीति में गहरी पैठ रही है, खासतौर पर नागौर जिले में, जहां इस परिवार का नाम आज भी सम्मान से लिया जाता है।
विजयपाल की शिक्षा स्नातक स्तर तक हुई है। उन्होंने युवा अवस्था में ही सामाजिक और राजनीतिक गतिविधियों में रुचि लेनी शुरू कर दी थी। यही वजह रही कि वे युवा कांग्रेस से जुड़ गए और जमीनी स्तर पर काम करते हुए धीरे-धीरे मुख्यधारा की राजनीति में आ गए।
2018 का चुनाव: पहला बड़ा कदम
वर्ष 2018 विजयपाल मिर्धा के राजनीतिक करियर में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ। उन्होंने डेगाना से विधानसभा चुनाव लड़ा और भारी मतों से जीत दर्ज की। उन्होंने भाजपा के वरिष्ठ नेता अजय सिंह किलक को पराजित कर यह दिखा दिया कि जनता बदलाव चाहती है। पहली बार विधायक बनने के बाद उन्होंने जनता से जो वादे किए, उन्हें निभाने की दिशा में कदम भी उठाए।
जनहित के मुद्दों पर सक्रियता
विजयपाल मिर्धा ने अपने कार्यकाल में डेगाना क्षेत्र में कई विकास कार्यों की शुरुआत की। सड़कों के निर्माण से लेकर जलापूर्ति की समस्याओं तक, उन्होंने स्थानीय समस्याओं पर खुलकर आवाज़ उठाई। इंदिरा गांधी स्मार्टफोन योजना जैसे कार्यक्रमों को गांव-गांव तक पहुँचाकर उन्होंने खासकर महिलाओं को डिजिटल सशक्तिकरण की दिशा में प्रेरित किया।
वे अक्सर क्षेत्र में जनसंपर्क करते दिखते हैं और लोगों की समस्याओं को सीधे सुनने की शैली ने उन्हें जनता के करीब ला दिया है। युवाओं में रोजगार और शिक्षा के अवसरों को लेकर भी वे सक्रिय रहे हैं।
पार्टी बदलने का फैसला
हाल ही में विजयपाल मिर्धा ने कांग्रेस पार्टी से नाता तोड़कर भारतीय जनता पार्टी का दामन थाम लिया। यह फैसला न सिर्फ उनके समर्थकों के लिए चौंकाने वाला रहा, बल्कि राजस्थान की राजनीति में भी हलचल मचा गया। कुछ लोगों ने इसे राजनीतिक अवसरवाद कहा, तो वहीं समर्थकों का मानना है कि यह फैसला जनहित में लिया गया है ताकि क्षेत्र के विकास को और तेज़ी से आगे बढ़ाया जा सके।

विवादों की भी रही छाया
राजनीति में सक्रियता के साथ विवादों का आना भी लगभग तय होता है। विजयपाल मिर्धा के साथ भी कुछ विवाद जुड़े, जिनमें सबसे चर्चित मामला उनके ड्राइवर की रहस्यमयी गुमशुदगी का रहा। इस मुद्दे ने काफी तूल पकड़ा और मामला अदालत तक पहुंचा। हालांकि, मिर्धा ने इस पर हमेशा कानून के अनुसार कार्रवाई का समर्थन किया है।
इसके अलावा, उन पर कुछ पुराने कानूनी मामले भी दर्ज हैं, जो चुनावी हलफनामों में सामने आए थे। हालांकि इनमें कोई बड़ा आपराधिक मामला नहीं है, लेकिन राजनीतिक विरोधियों ने इन्हें मुद्दा जरूर बनाया।
भविष्य की दिशा
विजयपाल मिर्धा आज एक ऐसे मोड़ पर हैं जहां उन्हें अपनी राजनीतिक विश्वसनीयता बनाए रखने की चुनौती है। पार्टी बदलने के बाद जहां भाजपा से उन्हें नई उम्मीदें हैं, वहीं उनके ऊपर यह दबाव भी है कि वे अपने क्षेत्र की जनता के भरोसे पर खरा उतरें। उनका अगला चुनाव और उसमें जनता की प्रतिक्रिया ही तय करेगी कि उन्होंने जो राजनीतिक दिशा बदली है, वह कितनी कारगर साबित होती है।
विजयपाल मिर्धा का राजनीतिक सफर पारंपरिक राजनीति और नई सोच के बीच का संगम है। वे एक ऐसे नेता हैं जो विरासत से तो जुड़े हैं, लेकिन नई पीढ़ी के मुद्दों को समझने और उन्हें हल करने की कोशिश करते हैं। उनकी अगली परीक्षा अब भाजपा के मंच पर होगी — और जनता यह देखने को उत्सुक है कि मिर्धा अपने वादों और विकास के एजेंडे को किस तरह आगे बढ़ाते हैं।








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